भाग-4
गर्मी
की लू और पसीने की बू, काले कोट का वज़न और पसीने
की टपकन, चारों तरफ टाइपराइटर की टक-टक और सब्जी मंडी जैसी
भगदड़, ये सब एक वकील की रोज़मर्रा जिंदगी का हिस्सा है। सिर्फ
गरमियाँ ही नहीं बरसात और सर्दी भी कम ज़ुल्म नहीं ढाती हम पे। खुले में टपकते हुए
टीन शेड के नीचे, तड़ातड़ बरसते पानी में फाइलों से खोपड़ी
बचाते हुए सीट से कोर्ट रूम तक जाने की रेस हर वकील को फिट रखती है। जो बुजुर्ग
हैं, दिव्याङ्ग हैं या फिर अपने वज़न से परेशान हैं वो
अपने-अपने जूनियर्स को दौड़ा दिया करते हैं और खुद धीरे-धीरे पीछे-पीछे चलते जाते
हैं। वो क्या है ना हर कोर्ट का टाइम फ़िक्स्ड होता है सुनवाई का। वक़्त पे पहुँचों, पुकार पे अपनी बात न कह पायी तो तारीख आगे बढ़ जाएगी।
पर
सब के पास जूनियर्स नहीं होते तो उन्हे थोड़ी दिक्कत हो जाती है, या तो समय से पहले ही सीट से उठ लो या किसी और वकील की मदद लो। पर मदद तो
सब एक दूसरे की कर ही देते हैं। दिव्याङ्ग, बुजुर्गवार और
वज़नदार वकीलों की तकलीफ तो जज साहब भी समझते हैं।
सर्दी
का अपना अलग मज़ा होता है साहब। जहां गर्मी में चिलचिलाती धूप और तीखी गरम हवाएँ
वहीं सर्दी में कड़ाके की सर्दी, कोहरा और हड्डी फाड़
देने वाली शीतलहर। जितने भी कपड़े पहन जाओ कम ही मालूम पड़ते हैं। पुराने सेट्टल्ड
और रुआबदार वकील जिनके पास अपने केबिन होते हैं वो तो हीटर भी लगा लिया करते हैं
और उनके सहारे आस पास के वकीलों का भी भला हो जाता है। सब अचानक से मिलनसार जो हो
जाते हैं और आखिर केबिन में आ कर दुआ सलाम करना तो बनता ही है। अब आए हैं तो कुछ
देर बैठेंगे भी। जजों को तो हीटर सुविधा उपलब्ध होती ही है तो उनके साथ पेशकार और
अर्दली का भी वक़्त सही कट जाता है।
वकालत
के सारे आनंद तो 80% वकील लेता है जिसके पास सिर्फ एक टीन शेड, दो कुर्सियाँ, एक छोटी सी बेंच या ज़्यादा हुआ तो एक
तखत होता है। 4 बम्बूओं पे खड़ा वो टीन शेड उसकी जिंदगी का एक अहम हिस्सा होता है।
अगर कचहरी में वो एक छोटी सी जगह उसे मिल जाए और वो बम्बू पे अपना तम्बू गाड़ दे तो
समझो कि उसने वकालत कि अपनी पहली सीढ़ी चढ़ ली।
फिर
साल दर साल इसी टीन की छत के नीचे उसकी जिंदगी के दिन गुज़रते हैं, यहीं वो वकालत के सारे लेवेल्स पार करते-करते बिगिनर से एक्सेलेन्स तक
पहुंचता है। वकालत एक ऐसी कला है जिसमें मंझने में बरसों लग जाते हैं। जो सारे गुर
सीख जाता है वो आसमान की ऊँचाइयाँ भी छू लेता है और जो ना सीख पाया वो बिगिनर का
बिगिनर ही रह जाता हैं। ये भी एक जुनून है साहब लग गया तो अर्श ना लगा तो फर्श।
प्रतीक्षा में अगले अंक की
जवाब देंहटाएंलग गया तो अर्श ना लगा तो फर्श ! क्या खूब कहा आपने !
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