गुरुवार, 17 जनवरी 2019

न्याय+आलय


अंतिम भाग

मेरी कचहरी के पिछले भागों में काफ़ी कुछ वो लिखने का प्रयास किया जो मैंने अधिवक्ता के रूप में अपने चार साल के कार्यकाल के दौरान अनुभव किया। फिर भी ये नहीं कह सकती कि सब कुछ लिख दिया। उन चार सालों को मैंने समेट कर एक श्रंखला का रूप देने का प्रयास किया। कितनी सफल हुई कह नहीं सकती। पर हाँ! ये मेरा अनुभव था, मेरा दृष्टिकोण था। कचहरी और बहुत कुछ है, और बहुत कुछ हो सकती है। अच्छे-बुरे, खट्टे-मीठे और कड़वे अनुभवों से रची ये सीरीज़ मैं आज इस अंतिम लेख के साथ यहीं ख़त्म कर रही हूँ।

पहली जनवरी को अपने सीनियर साहब से मिलने उनके घर गयी। नए साल की शुभकामनायें भी देनी थीं और उनका स्वास्थ्य भी जानना था। हमेशा की तरह वो अपनी सेहत के प्रति लापरवाह ही दिखे। मेरा उनका जूनियर बनने से उन्हें कोई सहायता मिली हो या नहीं पर उन्हें इतना आराम ज़रूर था कि तारीखें लेने और प्रार्थना पत्र लगाने के लिए उन्हें एक कोर्ट से दूसरे कोर्ट भागना नहीं पड़ता था और ऑफिसों के चक्कर लगाने के लिए तीन मंज़िल नहीं चढ़नी पड़ती थी। कचहरी छोड़ते हुए मुझे सबसे अधिक इसी बात का अफसोस था कि एक बार फिर उन्हें ये सब खुद ही करना होगा।

मैंने वकालत पढ़ते समय कभी नहीं सोचा था कि कभी कचहरी में बैठूँगी या प्रेक्टिस करूंगी। वकालत की पढ़ाई मेरे लिए बस एक और डिग्री जैसी थी। फिर भी जीवन में ऐसे बदलाव आए कि मैंने वकील के रूप में अपना रेजिस्ट्रेशन भी कराया, ऑल इंडिया बार एसोसिएशन का इम्तिहान भी पास किया और प्रेक्टिस भी की। या कहूँ करने की कोशिश की। पर कभी खुद को वहाँ से जोड़ नहीं पायी। कभी-कभी खुद को ही ढूंढने के लिए बहुत भटकना पड़ता है। अनजानी, अनमनी राहों पर चलना पड़ता है। परिवर्तन जीवन में एक अच्छी बात होती है। वकालत में मन नहीं लगा और समझ आया कि अपने में वकीलों वाली कोई बात नहीं तो फिर अपनी राह बदल ली।

2000 से ऊपर वकील होगा इस समय यहाँ जिला कचहरी में। कितनों की प्रेक्टिस चलती है बताना बहुत मुश्किल है। फिर भी वकील रोज़ अपने बस्ते पर अपनी कुर्सी पर बैठा मिलेगा। एक साधारण वकील अपने जीवन में ज़्यादा कुछ संपत्ति जमा नहीं कर पाता। अधिकतर के लिए उसका घर चलाना, बच्चों को पढ़ाना ही एक मुश्किल प्रक्रिया होती है। फिर भी पूरी कचहरी में वकील एक दूसरे से कभी अपने जीवन का रोना रोते नहीं दिखेंगे। जो जुगाड़ू होते हैं वो कैसे ना कैसे पैसा बनाने का तरीका जानते ही हैं, जिनका नाम हो जाता है उन्हें मुवक्किल ढूँढना नहीं पड़ता। जो बस तफरी करने के लिए बैठे हैं उन्हें किसी बात की चिंता नहीं होती। बस बुरा उनके लिए लगता है जो वाकई ज्ञानी हैं, अनुभवी हैं, तमीज़दार और अपने पेशे से ईमानदार हैं उन्हें उनके लायक काम और उपयुक्त पारिश्रमिक नहीं मिल पता।

मेरी सीट के पास ही के.सी.सक्सेना वकील साहब बैठा करते थे। बहुत अच्छे वकील थे। बहुत ज्ञान और अनुभव था उन्हें वकालत का। बहुत सुलझे हुए और संयमित व्यक्ति थे। सीनियर साहब से पता चला पिछली अक्तूबर में वो चल बसे। कोई ऐसी बीमारी हो गई थी जो समय रहते डॉक्टर पकड़ नहीं पाये और उनका देहांत हो गया। उनकी तीन बेटियाँ हैं। मात्र एक का विवाह कर पाये थे। अपने पीछे अपनी पत्नी और दो बेटियों का उत्तरदायित्व छोड़ गए। बहुत साधारण व्यक्ति थे। ईश्वर उनकी आत्मा को शांति दे और उनके परिवार को शक्ति। मुझे नहीं पता उनका परिवार आगे अपना जीवन किस दिशा में और कैसे ले जाएगा। एक वकील सारी उम्र काम करता है पर कुछ जोड़ नहीं पाता। बार एसोसिएशन्स से भी कोई खास आर्थिक सहायता प्राप्त नहीं होती। जीवन बीमा जिसकी पॉलिसी कभी मिलती नहीं। अनुदान जिसकी बस घोषणा ही होती है। कोई पेंशन नहीं, पी.एफ. नहीं।

ऐसा नहीं कि इसके पहले मैंने किसी अधिवक्ता की मृत्यु का समाचार नहीं सुना। पर के.सी. वकील साहब कुछ अलग थे। सब के जैसे नहीं। पाता नहीं क्यूँ ईश्वर को भी अच्छे लोगों की ही ज़रूरत ज़्यादा है। जीवन और मृत्यु ही संसार का चक्र है और प्रत्येक मानव को इस चक्र से गुजरना है। एक साधारण से वकील की मृत्यु से किसी को क्या फर्क पड़ता है। फर्क बस इस बात से पड़ता है कि वकील मात्र धनोपार्जन के लिए ही वकालत नहीं करता, जाने-अनजाने वो एक वकील, असंख्य पीड़ित लोगों की सहायता भी करता है। ईश्वर ने इस धरती पर मनुष्य को विभिन्न पथों पर दिशा निर्देश देने के लिए और आवश्यकता पड़ने पर सहायता देने के लिए माध्यम सुनिश्चित किए हैं। उन्हीं कई माध्यमों में से एक वकील भी है।

आशा करती हूँ आपको कुछ अच्छा पढ़ने को मिला हो, कुछ नया जानने को मिला हो या थोड़ा सा मनोरंजन हुआ हो। जो भी हो इस शृंखला को अपना समय देने के लिए मेरे पाठकों का धन्यवाद। इसे यहीं समाप्त करते हुए मैं यहाँ से विदा लेती हूँ।
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1 टिप्पणी:

  1. सक्सेना साहब के देहावसान के बारे में जानकर दुख हुआ । सचमुच ऐसे वकील तो आज के ज़माने में ढूंढे न मिलें । वकालत और अन्य पेशों में भी बुरा उन्हीं के लिए लगता है जो वाक़ई ज्ञानी हैं, अनुभवी हैं, तमीज़दार हैं और अपने पेशे के प्रति ईमानदार हैं लेकिन उन्हें उनके लायक काम और उपयुक्त पारिश्रमिक नहीं मिल पाता ।

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